Rahat Sahab : Mujhe sunate rahe log waqia mera By Deepak Ruhani

  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • Paperback ‏ : ‎ 256 pages
  • ISBN-10 ‏ : ‎ 9387390780
  • ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9387390782
  • Item Weight ‏ : ‎ 331 g
  • Dimensions ‏ : ‎ 14 x 1.48 x 21.6 cm

Product Description – 

इस किताब के मुसन्निफ़ और मेरे लिये ये मुश्किल नहीं था कि आधी सदी की लगभग हर शब गुज़रे किसी वाक़िए या सानिहे की मुकम्मल या अधूरी तस्वीर दिखा कर इस किताब को अलिफ़-लैला की हज़ार दास्तान बना देते। लेकिन दीपक जो इस किताब के मुसन्निफ़ हैं उनका इरादा कुछ एबस्ट्रैक्ट बनाने का था जिसमें वो रावी की शक्ल में उन लोगों से मिलवाना चाहते थे जिनका मेरी रातों से ज़रा कम-कम ही तअल्लुक़ रहा। कुछ ख़ानदान के अफ़राद, कुछ अहबाब, कुछ दोस्त, कुछ मुख़ालिफ़ीन, लेकिन सच मानें जो मेरी रातों के गवाह रहे उनमें से ज़ियादातर लोग रुख़सत हो चुके हैं।

ये किताब, बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल नहीं हिकायाते-हालात और हिकायाते-तज्रबात है, मेरे हाफ़िज़े की दहलीज़ पर जो क़िस्से और वाक़िआत दस्तक देते हैं वो एक-दूसरे से मिलकर गड्डमड्ड हो चुके हैं , यह किसी puzzle की सी है। एक ऐसे गत्ते से काटे हुए बे-तरतीब टुकड़े, जो आधी सदी से गर्मी, सर्दी, बारिश, धूप-छाँव जैसे अनाम और अनजान मौसमों से आँखें मिलाते-मिलाते बूढ़ा हो गया, या यूँ कहिये कि इस किताब के ज़ियादातर काग़ज़ इतने भीग चुके हैं कि इस पर मौजूद तहरीर पर लगाने को तैयार है, लेकिन इस किताब के लेखक की ज़िद ने इसे तरतीबवार बनाने की मुकम्मल कोशिश की है। दिलचस्पी का हल्का सा दरीचा खोलने पर राहत इंदौरी की तस्वीर को पहचानना आसान हो जाता है।

मुझे इस बात का एतराफ़ है कि मैं उस तमाशे को भी दिखाने में कहीं-कहीं तक़ल्लुफ़ बरत गया हूँ जो तमाशा मेरे आगे होता रहा है। ये किताब पचास-साठ के दशक की black and white फ़िल्म की तरह है जिसमें कोई पहचानी हुई सी तस्वीर कभी आवाज़ खो बैठती है और कभी चीख़ पड़ती है, मेरी ख़्वाहिश है कि लोग इस तस्वीर को पहचानें जिसे बनाने में उसकी कोई कोशिश नहीं जिसकी तस्वीर है…

मैं चाहता हूँ कि लोग इसे कोई नाम दें ताकि पता चल सके कि मैं कहाँ दफ़्न हूँ…

– राहत इंदौरी

About the Author –

हिन्दी-उर्दू भाषा और साहित्य में बराबर संतुलन बनाकर गम्भीरता से काम करनेवालों में दीपक रूहानी ख़ासे चर्चित हैं। इनकी उम्र लगभग चालीस बरस है। पिछले पंद्रह बरसों से बिना किसी शोर-शराबे के उर्दू भाषा और साहित्य की तमाम सामग्रियों को हिंदी में अनुवादित और लिप्यंतरित करने में लगे हुए हैं। इनकी सम्पादित-अनूदित और मौलिक किताबें महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों से प्रकाशित हो चुकी हैं। क़स्बाई इलाक़े सीमित संसाधनों के बीच रहकर भी ग़ज़ल-विधा पर केंद्रित छमाही पत्रिका ‘ग़ज़लकार’ का सम्पादन और प्रकाशन करके हिंदी और उर्दू की रिश्तेदारी बनाये रखने में सहयोग दे रहे हैं। ग़ज़ल और राहत साहब से मुहब्बत का ही नतीजा है कि इस किताब पर इन्होंने काम किया। हिन्दी-साहित्य में डॉक्टरेट दीपक रूहानी मूल रूप से ज़िला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के रहनेवाले हैं और आजकल रोज़ी-रोटी के सिल्सिले में बिहार प्रांत के मधुबनी ज़िले में स्थित आर.के.कॉलेज में हिंदी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। ईमेल ही इनका स्थायी पता है – [email protected].

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