- Language : Hindi
- Paperback : 172 pages
- ISBN-10 : 819484522X
- ISBN-13 : 978-8194845225
- Item Weight : 172 g
- Dimensions : 5.5 x 0.5 x 8.5 cm
Product Description –
कहानी 2013 की पृष्ठभूमि पर आधारित है। कहानी दीन-दुनिया से बेफिक्र, मस्तमौला अमर और बोल्ड, समझदार, और ज़िम्मेदार गीत के इर्द-गिर्द घूमती है। ऋषिकेश का रहने वाला अमर, दिल्ली में जॉब करता है। शादी जैसे माहौल में उसकी मुलाक़ात गीत से होती है, पर बात सिर्फ़ मुलाक़ात तक रह जाती है। दिल्ली में, एक दिन अचानक अमर और गीत की मुलाक़ात होती है। बातें, मुलाक़ातें, मोहब्बत में तब्दील हो जाती हैं। दोनों लिव-इन में रहते-रहते अपने भविष्य का ख़्वाब भी देखने लगते हैं। इसी बीच अमर से एक ऐसी ग़लती हो जाती है जिससे दोनों को एक-दूसरे से अलग होना पड़ जाता है। अमर पूरी तरह से टूट जाता है। अलगाव से उपजी इस निराशा से ख़ुद को बाहर लाने के लिए वह रोड ट्रिप पर निकल जाता है, जहाँ वो अलग-अलग तरह के लोगों से मिलता है, बातें करता है और उनकी स्टोरी को अपने ब्लॉग पर शेयर करता है; पर इन सबके बावजूद वो गीत को भुला नहीं पाता। इसी बीच उसे अपनी बहन की शादी में ऋषिकेश आना पड़ता है, जहाँ उसे गीत के ऋषिकेश में ही होने की बात पता चलती है। जब वो गीत से मिलता है तो बहुत कुछ बदल चुका होता है। फिर… अब आगे क्या होता है? क्या अमर, गीत एक दूसरे के हो पाते हैं। ये कहानी प्यार-मुहब्बत को इतने क़रीब से देखती है कि हर बात, हर घटना आपको ख़ुद के आस-पास घटित होती हुई महसूस होती है। दो दिलों की प्यार भरी दास्तान है ‘अमर-गीत नेस्ट’।.
About the Author –
विनय निरंजन, झारखण्ड, गिरिडीह जिले के एक छोटे से गाँव बगोदर से ताल्लुक रखते हैं। स्कूली शिक्षा गाँव से हुई। लिखने-पढ़ने का शौक़ इतना था कि ग्यारह साल की उम्र में न्यूज़पेपर के स्टोरी कॉलम में स्टोरी लिखना शुरू कर दिया। औरों की तरह रेस में लगकर कोटा के कोचिंग सेंटर के चक्कर भी काट लिये। पता था कुछ होना जाना था नहीं। स्कूली ज्ञान सर के ऊपर से हवा बनकर बादलों में खो सा जाता था। फिर इलाहाबाद (प्रयागराज) के एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी से बी.टेक. करने लगे। इस बीच प्यार हुआ, इ़करार हुआ, पर बात आगे नहीं बढ़ी। इस सफ़र में थिएटर संस्था से जुड़ने का मौका मिला, जहाँ कहानी लिखने और डायरेक्शन का काम किया। एक मौक़ा ऐसा भी आया जहाँ युनिवर्सिटी ने कल्चरल विभाग के स्किट और स्टेज प्ले डिपार्टमेंट की डोर थमा दी, जिसमें इन्होंने आई.आई.टी. के कल्चरल विभाग में अवॉर्ड को अपने नाम किया। युनिवर्सिटी से डिग्री हासिल हुई, पर प्यार अधूरा ही रह गया और जब प्यार अधूरा रह जाता है तो इंसान अपने शौक़ को पूरा करने में लग जाता है। अपने थियेटर और लेखन से लगाव के वशीभूत विनय ने इलाहाबाद से सीधे मुम्बई के लिए ट्रेन पकड़ी और मायानगरी में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की। इनकी बहुत सी शॉर्ट फ़िल्में और डॉक्यूमेंट्री इंटरनेशनल, नेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में सराहना प्राप्त कर चुकी हैं। विनय छह वर्षों से फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना सक्रिय योगदान दे रहे हैं।.
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