राजवीर, अपना एक पाँव साहित्य की दुनिया में रखते हैं, तो दूसरा कॉर्पोरेट जगत में। मौजूदा व़क्त में उनका ठिकाना मुम्बई है, जिसे वह बम्बई जानकर जी रहे हैं। बम्बई तक पहुँचने के लिये उन्होंने सबसे पहले ग्वालियर के नज़दीक एक गाँव कठमा में एक कुम्हार परिवार में जन्म लिया और स्कूल में बैठने की उम्र तक आते-आते रतलाम पहुँच गए थे। रतलाम में स्कूल ख़त्म हुआ तो अगला पड़ाव ग्रेजुएशन के नाम पर इंदौर में पड़ा, जहाँ से नौकरी का धक्का पाकर पहले तो भुबनेश्वर और फिर सीधा पूना शहर जा पहुँचे। पूना में जमना शुरू ही किया था कि उखड़ गए और जनाब जा पहुँचे अपनी मंज़िल, बम्बई। इस स़फर के दौरान बहुत कुछ बदला, लेकिन जो एक बात नहीं बदली, वह थी हिंदी साहित्य के लिए प्रेम और लगन; यह किताब उसी प्रेम और लगन का एक ठोस सबूत है।