Bhuvaneshwar Upadhyay

भुवनेश्वर उपाध्याय ने एक ऐसे वैचारिक लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाई है जिसने कोई भी शार्टकट न लेकर कविता, कहानी, व्यंग्य, आलोचना,
संपादन से लेकर उपन्यास लेखन तक की एक लम्बी और क्रमिक यात्रा की है। अखबारों और पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन के साथ साथ अब तक उनके तीन कविता संग्रह - "समझ के दायरे में, दायरे में सिमटती धूप, दायरों की दुनिया" कहानी संग्रह - "समय की टुकड़ियाँ, फिर वहीं से" व्यंग्य संग्रह - "बस फुँकारते रहिये" एवं उपन्यास- "महाभारत के बाद, एक कम सौ, हॉफमैन(ए पेनफुल जर्नी), जुआगढ़ (दाँव पर दुनिया) के साथ साथ एक संपादित पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है। लेखक पर पीएचडी के लिए शोध हो रहे हैं। स्वामी रामानंदतीर्थ मराठवाड़ा विश्वविद्यालय में बी.ए. द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में लेखक शामिल होकर पढ़ाया जा रहा है।
भुवनेश्वर उपाध्याय की कृतियों में जिस शिद्दत से मानवीय मूल्यों की उपस्थिति दर्ज होती है उतनी ही ईमानदारी से यथार्थ की कठोरता और विवशताओं से भरे जीवन के विभिन्न व्यक्त-अव्यक्त पहलुओं को परिभाषित भी किया जाता है। 'समाज में जो घटित होता है वो सब कहानियों के विषय नहीं होते', इसे चरितार्थ करते हुए अचानक वो कहीं किसी पर्दे के पीछे से ऐसा कुछ उठा लाते हैं जो चौंका देता है। रिश्तों की कश्मकश हो या फिर सहज मानवीय दैहिक, मानसिक आवश्यकताएँ, संघर्ष, प्रेम आदि खुलकर सामने आता है। जीवन को बहुत करीब और बारीकी देखने की उनकी आलोचकीय दृष्टि, अव्यक्त और अप्रत्याशित को जिस सहजता से अनभूत करती है उनकी कलम उतनी ही सटीकता और रोचकता से उसे अपनी रचनाओं में प्रस्तुत भी करती है। उनका पौराणिक लेखन सहज मानवीय मनोविज्ञान, जीवन दर्शन, समसमायिकता के आधार पर तथ्यों का तार्किक और वैचारिक विश्लेषण है। सरल, सहज बोलचाल और समयानुकूल भाषा, सहज चुटीले संवाद उनकी रचनाओं से पाठक को जोड़ने में केवल सफल ही नहीं रहते हैं, बल्कि वैचारिकता के साथ मिलकर सोचने और समझने के लिए भी बहुत कुछ छोड़ जाती है।