सौरभ पाण्डेय उन अध्येताओं में से हैं जिनके लिए साहित्य-कर्म मात्र संप्रेषण नहीं, बल्कि विचार-मंथन एवं सतत मनन का पर्याय है. रचना-कर्म में ‘क्या' के साथ ‘क्यों' और ‘कैसे' को भी आप उसी तीव्रता से अहमीयत देने का आग्रह रखते हैं. आपकी पहचान एक गंभीर साहित्यकार के रूप में होती है. विभिन्न छंदों पर रचनाकर्म करने को आपने गंभीरता से लिया है. आपका एक काव्य संग्रह ‘इकड़ियाँ जेबी से’ वर्ष 2013 में अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित हो चुका है। आपने वर्ष 2014 में ‘परों को खोलते हुए-1’ का कुशल संपादन किया, जो पन्द्रह रचनाकारों की कविताओं का संकलन है. अंजुमन प्रकाशन से ही प्रकाशित ‘छंद मंजरी’ (आलोचना) आपकी बहुचर्चित पुस्तक है। आप भोजपुरी साहित्य की ख्यात पत्रिका ‘आखर’ के नियमित स्तंभकार हैं तथा आपके स्तंभ ‘बतकूचन’ की चर्चा हिन्दी साहित्य के गलियारों तक है. लगभग तेइस वर्षों से आप राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न कॉर्पोरेट इकाइयों में कार्यरत हैं, आप गणित से स्नातक होने के साथ सॉ़फ्टवेयर तथा निर्यात-प्रबन्धन में डिप्लोमा प्राप्त हैं. तथा प्रबन्धन की डिग्री ली है.