Product Description- संदीप और मेघना कॉलेज की लाइब्रेरी में मिले और एक ही किताब को लेकर उलझ पड़े । फ़िर उन्होंने बारी बारी उस किताब को पढ़ने का फ़ैसला किया ।
“जिस प्रेम कहानी में उतार चढ़ाव ना हो वो एक बेहतर प्रेम कहानी हो ही नहीं सकती ।”
संदीप – क्या हर प्रेम कहानी में उतार चढ़ाव होना ज़रूरी है ?
मेघना – असल ज़िन्दगी का तो पता नहीं । लेकिन अगर किताबों की बात करें तो शायद हां ।
जहां मेघना को किताबों की अच्छी समझ है, तो वहीं किताबों को लेकर संदीप की समझ ठीक उसके उलट है ।
संदीप और मेघना अपनी अपनी बारी पर किताब को एक दूसरे को देने के लिए मिलते और इसी के साथ उनकी दोस्ती की शुरुआत हुई ।
दोस्ती प्यार में बदली ।
“अक्सर हम प्रेम कहानियों को पढ़ते समय एक आस लगाये रहते हैं कि कहीं न कहीं अंत में कहानी के मुख्य किरदार एक हो जायेंगे और कहानी की सु:खद समाप्ति हो जायेगी ।”
लेकिन संदीप और मेघना की ये कहानी अन्य कहानियों से थोड़ी अलग है ।
ये कहानी है संदीप के संघर्ष की, मेघना की मजबूरी की, विनीत और रोहित जैसे अच्छे दोस्तों की और हां… सूरज जैसे विलेन की भी ।
तो वहीं लाइब्रेरी वाली किताब (लव इन द रेन) की बात करें तो वो अस्सी के दशक की अवनी और विक्रम की प्रेम कहानी है । अवनी और विक्रम की मुलाकात मेघालय के शिलांग शहर में एक बस के सफ़र से हुई । विक्रम जो एक सिविल इंजीनियर है और प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है । अवनी एक सरकारी बैंक में नौकरी करती है । दोनों अपने अपने ऑफिस जाने के लिए एक ही नंबर की बस पकड़ते और फ़िर पैदल साथ में सफ़र करते । बातों ही बातों में दोनों की नजदीकियां बढ़ीं और नजदीकियां प्यार में बदल गई । अवनी और विक्रम की ये प्रेम कहानी भी उतार चढ़ाव से घिरी है ।
संदीप – मेघना तथा अवनी – विक्रम की ये दोनों कहानियां बेशक अलग हो । लेकिन ये दोनों ही कहानियां एक दूसरे से बंधी हुई हैं ।
(सूचना :- लव इन द रेन नामक कहानी जैसी कोई अलग कहानी या उपन्यास नहीं है । यह पूर्णत: लेखक की कल्पना पर आधारित है और इस उपन्यास लाइब्रेरी का ही अंश है ।)
About the Author –मेरा नाम अंकित आर्य है । मैं मुंबई में रहता हूँ । मेरा जन्म 25 सितम्बर 1993 को आगरा में हुआ था । मैंने अपनी ग्रेजुएशन (बी.कॉम) सेंट जॉन्स कॉलेज (आगरा) से उत्तीर्ण की है । अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं मुंबई में ही सेल्स एंड मार्केटिंग की जाँव करने लगा । वैसे मुझे बचपन से ही किताबें पढने का शौक था और मैं कहानियों को अपने दिमाग में ही रचता रहता था । फ़िर मैंने अपनी रचनाओं को पन्नों पर उतारना शुरु किया और इसी के साथ मैंने अपनी पहली किताब “लाइब्रेरी” लिखी ।
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