मिथिलेश वामनकर युवा कलमकार है जो साहित्य की कई विधाओं में दखल रखते हैं। आपका मानना है कि दोहा छंद केवल मात्रात्मक ढाँचा नहीं है बल्कि इसने हर युग से अपना एक आंतरिक वैशिष्ट्य भी प्राप्त किया है, इसलिए दोहा न केवल शैल्पिक दृष्टि से निर्दोष होना चाहिए बल्कि इसका युगबोध से भरपूर होना भी आवश्यक है। आपका संपादन कौशल इस दृष्टि से स्पृहणीय है कि आप अवांछनीय-सामग्री को दृढ़ता से अस्वीकार कर देते हैं। मिथिलेश वामनकर का जन्म मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में हुआ। आप गणित विषय से स्नातक हैं और लोक-सेवा आयोग से वाणिज्यिक कर अधिकारी के रूप में चयनित होकर वर्तमान में राज्य 'कर उपायुक्त' के पद पर भोपाल में कार्यरत हैं। आपका ग़ज़ल संग्रह ‘अँधेरों की सुबह' वर्ष 2016 में अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है।